Almost overnight, Jyotiraditya Scindia has become a power to reckon with in Madhya Pradesh politics. With no party securing absolute majority in 2018 assembly election, he and his group of 22 followers are in a position to make or mar any government. Continue reading “What has Scindia gained by leaving Congress”
Upper caste votes may prove game changer in Madhya Pradesh
NK SINGH
विधान सभा चुनाव की विधिवत घोषणा भले ही ६ अक्टूबर को हुई हो, पर मध्यप्रदेश में इसकी बिसात जुलाई में ही बिछ चुकी थी, जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी जन आशीर्वाद यात्रा शुरु की.
उस दिन से ही भाजपा और कांग्रेस अखाड़े में ताल ठोंक रहे हैं. इन 12 हफ़्तों में प्रदेश की राजनीति ने दो दिलचस्प करवटें ली हैं.
छह अक्टूबर को जिस दिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी दोनों मध्यप्रदेश के चुनावी दौरे कर रहे थे, दूर लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव कांग्रेस से नाता तोड़ने की घोषणा कर रहे थे: “कब तक इंतजार करें, एमपी में हम चौथे नंबर की पार्टी हैं.”
एक सप्ताह पहले ही बसपा सुप्रीमो मायावती कांग्रेस को बाय-बाय कर चुकी थीं. पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि बसपा के साथ आने से कांग्रेस को लगभग ४५ सीटों पर फायदा मिल सकता था.
समझा जाता था कि भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस दूसरी पार्टियों को साथ लेकर इलेक्शन लड़ेगी ताकि सरकार-विरोधी वोटों का बंटवारा न हो.
2018 MP Assembly election a test for Brand Shivraj
NK SINGH
२००३ के विधान सभा चुनाव प्रचार की आखिरी शाम. कार ओरछा के रास्ते गड्ढों में हिचकोले ले रही थी. रात के अँधेरे को चीरती हेडलाइट की रोशनी सड़क के किनारे पड़े गिट्टी के ढेरों पर पड़ी. दिग्विजय सिंह उस तरफ इशारा करते हुए बोले, “चुनाव के बाद सड़क का काम शुरू हो जायेगा.”
सड़क की मरम्मत तो हुई. पर तबतक दिग्विजय सिंह मुख्य मंत्री नहीं थे. उनकी जगहउमा भारती आ गयी थीं.
लालू यादव से प्रभावित दिग्विजय सिंह का खयाल था कि डेवलपमेंट से वोट नहीं मिलते. पर उनकी सोशल इंजीनियरिंग धरी की धरी रह गयी. दलित एजेंडा का पांसा उल्टा पड़ गया. गांवों में सवर्ण और ओबीसी लामबंद हो गए.
पर उस चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के पहले दिग्विजय सिंह ने एक और काम किया था —- मध्य प्रदेश को दो हिस्सों में बाँटने का. आनन-फानन में असेंबली से प्रस्ताव पास करा कर सन २००० में छत्तीसगढ़ बना.
नए राज्य ने न केवल मध्य प्रदेश का राजनीतिक भूगोल बदल दिया बल्कि उसके राजनीतिक इतिहास को भी प्रभावित किया.
पहले प्रदेश में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच वोटों का अंतर आम तौर पर एक से तीन प्रतिशत के बीच हुआ करता था. पर छत्तीसगढ़ बनने के बाद वह बढ़कर ८ % से भी ज्यादा हो गया.
२००३ की हार के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती चली गयी और भाजपा मजबूत. कांग्रेस के वोटों में लगभग ६ % की गिरावट आई.
दूसरी तरफ, भाजपा के विधायकों जीतने का औसत मार्जिन बढ़कर दोगुने से ज्यादा हो गया. भाजपा का जनाधार बढ़ा ही, उसने नए इलाकों पर भी कब्ज़ा किया. अपने पारंपरिक गढ़ मालवा-निमाड़ और मध्य भारत के साथ-साथ वह महाकौशल और बुंदेलखंड में भी मजबूत होकर उभरी.