
MP Assembly election 2018, Dateline Chitrakoot
NK SINGH
चित्रकूट: अगर प्रभु राम फिर चित्रकूट आते तो वे जरूर पूछते कि उनकी मन्दाकिनी इतनी मैली कैसे हो गयी. शहर का कूड़ा-कर्कट, मल-मूत्र सीधे इस पवित्र नदी में जा रहा है. सबकी आँख के सामने.
रामघाट पर एक भगवाधारी साधू हमें रोककर कहते हैं देखिये न, कोई कछु नहीं कर रहा, लोग भी कचरा नदी में बहा देते हैं, शासन-प्रशासन अगर कबहु एक राउंड लगा ले तो थोडा ठीक हो जायेगा.
राम चित्रकूट में एक चुनावी मुद्दा हैं, पर मंदिर को लेकर कम और मन्दाकिनी की दुर्दशा को लेकर ज्यादा.
राम वन गमन पथ को लेकर भाजपा ने पिछले चुनाव के समय वायदे किये थे. उन वायदों की याद दिलाने इस चुनाव के ठीक पहले एक कांग्रेसी ने उस रास्ते एक यात्रा निकाल दी.
असलियत यह है कि जिस रास्ते चलकर राम वनवास गए थे, आज उस पर दस्यु चल रहे हैं. चित्रकूट के आस-पास के जंगलों में डकैतों का आतंक है. आठ-दस खूंखार गैंग हैं. एक नई बैंडिट क्वीन साधना पटेल भी एक्टिव है.
जाति पर आधारित ये गैंग चुनाव को भी प्रभावित करने की कोशिश करते हैं. ये डकैत इलाके में अपनी जाति के मसीहा हैं.
इलाका इतना पिछड़ा है कि तीस साल तक नानाजी देशमुख यहाँ चिमटा गाड़कर पड़े रहे. उनकी वजह से आरआरएस भी एक्टिव है. पर समस्याएँ जस की तस है.

उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित यह इलाका बुंदेलखंड की संस्कृति के ज्यादा करीब है और एक मायने में विन्ध्य का प्रवेश द्वार है.
लोगों से बातचीत में कांग्रेस की बढती ताकत – २००३ में २२ परसेंट वोट के मुकाबले उसे २०१३ में ३२ परसेंट वोट मिले – की झलक दिखती है. केवल एक साल पहले चित्रकूट असेंबली सीट के लिए हुए उपचुनाव में पूरी ताकत लगाने के बावजूद – शिवराज सिंह चौहान समेत कई बड़े नेता यहाँ कैंप कर रहे थे — भाजपा हारी थी.
सतना से चित्रकूट के लिए निकलने के बाद ही अंदरूनी इलाकों में विकास की कलई खुलने लगती हैं. इस सड़क के कुछ हिस्से दस साल से ख़राब पड़े हैं. अमेरिका की तो नहीं पर दिग्विजय-राज की सड़कें याद आने लगती है.
कुपोषण से कराह रहा यह इलाका इतना पिछड़ा है कि कितना भी करो कम है. नानाजी के गोद लिए गाँवों में से एक पटनी में राष्ट्रपति तक के दौरे हो चुके हैं, पर एप्रोच रोड आज तक नहीं बना है. राष्ट्रपति वहां हेलीकाप्टर से गए थे.
चित्रकूट विधान सभा की सीट पर कांग्रेस काबिज़ है और बहुत कम लोगों को भरोसा है भाजपा उसे पछाड़ पायेगी. भाजपा ने २०१३ का चुनाव हार चुके कैंडिडेट पर फिर दांव लगाया है.
इलाके में कास्ट-पॉलिटिक्स इस कदर हावी है कि बिहार भी शर्मा जाये. राजनीति की या इलेक्शन की बात छेड़ने पर लोगों की बात जाति से शुरू होती है और जाति पर ही ख़त्म होती है.
मझगवां के पास एक ढाबे पर गले में गमछा डाले एक सज्जन अपने एमएलए के बारे में कहते हैं, “पंडितजी तो बड़े मायावी हैं. पता नहीं कैसे जीतते हैं.” कुरेदने पर पता चलता है वे दूसरी जाति के हैं.
इलाके की राजनीति ब्राह्मण और राजपूतों के बीच दो-फाड़ है. सारे दल उसीको ध्यान में रखकर दांव खेलते हैं.
विन्ध्य में बसपा तीसरी ताकत है. १९९८ से २०१३ के बीच उसके वोट १६ से १८ परसेंट के बीच रहे हैं. उसकी सफलता की वजह है कि उसके पास अपने परंपरागत दलित वोट तो हैं ही, उसने कुर्मी, यादव और दूसरी मालदार पिछड़ी जातियों को भी अपने पाले में किया है.
जिस चित्रकूट के घाट पर तुलसीदास ने चन्दन घिसा था, वहां 500 साल बाद रघुवीर की जगह जनता-जनार्दन ने ले ली है. २८ नवम्बर को तिलक तो उसे ही करना है.
Dainik Bhaskar 12November 2018
